Friday, July 29, 2011

चोरों का सरदार


वो ज़माना और था ,
जब बह जाती थी गन्दगी बरसात के साथ ,
अब बरसात दबी गन्दगी को बिखेर देती है ,
हमारे आपके सामने आसपास ,
गन्दगी तुम में और मुझमें हो न हो ,
हम बैठे जरुर हैं गन्दगी के ठीक बीचों बीच ,
ये वो गन्दगी है ,
जो न मेरी है न तुम्हारी है ,
ये कोई और है जिसने ,
बिखेर दी है अपनी गन्दगी ,
मेरे और तुम्हारे आसपास ,
ये कोई और कौन है ,
इसे तुम भी जानते हो ,
मैं भी जानता हूँ ,
वो कोई और ही तुम है ,
और वो कोई और ही मैं है ,
उसकी पूरी चौपड़ में ,
मैं भी एक सिक्का हूँ ,
तुम भी एक सिक्का हो ,
भ्रम मत पालो कि  तुम्हारी हैसियत ,
किसी जिम्मेदार के जैसी है , 
या मैं हूँ कोई जिम्मेदार ,
जब तुम्हारी जिंदगी का ,
और मेरी जिंदगी का भी ,
जो कुछ है ,
उसी का है ,
यहाँ तक कि फैसले हमारे ,
लेता वह है तो ,
वह ही है जिम्मेदार ,
फिर बची क्या ,
सारी गन्दगी का ,
जिम्मेदार वही है ,
जो इस व्यवस्था में बैठा है ,
सबसे ऊपर ,
चोरों का सरदार |

Sunday, August 8, 2010

बड़े बड़े लोग भी छोटे होते हैं ?

                                                       बात की शुरूवात नाती से करता हूँ | एबरपटली किसी बड़े आदमी से शुरू करूँगा तो मामला प्रिजुडिस होने की संभावना ज्यादा है | जबसे उसने स्कूल जाना शुरू किया है , याने , करीब तीन वर्ष की आयु से वह वीक एंड में मेरे याने अपने नाना , नानी के साथ ही रहता है | तीन वर्ष पूर्व परिवार में एक सदस्य और बढ़ गया याने मेरे बेटे की शादी के बाद , उसकी मामी परिवार में जुड़ गयी | शुरुवात में उसे लगा कि कहीं मामी नाम की इस सदस्य के आने से हम लोगों का प्यार उसकी तरफ कम तो नहीं होगा और उसके अंदर एक फ्रस्ट्रेशन डेवलप हुआ , किन्तु कालान्तर में मेरी पुत्रवधु के संगत और प्रेमपूर्ण व्यवहार से वह फ्रस्ट्रेशन दूर हो गया |
                                                   
                                                       अब बड़ी लड़की का वह बेटा , जिसे हम प्यार से डिम्पू कहते हैं , नौ वर्ष का हो गया है | उसके बाद वाली बच्ची की बेटी चार वर्ष की है और मेरे बेटे की बेटी दो वर्ष की है | मेरी कोई भी मंशा मेरे परिवार का इतिहास बताने की या विवरण बताने की नहीं है | समस्या यह है कि नौ वर्ष का डिम्पू चार वर्ष की सोना और दो वर्ष की अनी से बराबरी करता है | उसे , उसके माँ-बाप , में स्वयं या मेरी पत्नी , उसके मामा -मामी कितना भी समझाएं , पर , उसे वही गेंद चाहिये रहती है जो सोना या अनी के पास होती है  | ज्यादा समझाने पर , वह तर्क देता है कि वह इसलिए ऐसा करता है कि बचपन में उसके साथ भी ऐसा ही हुआ होगा | उसके पास एक दो मिसालें हैं , जब वह छोटा था तो किसी घर आये मेहमान के थोड़े बड़े बच्चे के रोने पर , उसका खिलोना उस बड़े बच्चे को दे दिया गया | यानी , जो तकलीफ उसे हुई , वही तकलीफ वह अपने से छोटे अन्यों को देना चाहता है | जहां तक मेरे आब्जरवेशन का सवाल है , यह तकलीफ केवल डिम्पू के साथ नहीं है , इस समाज को लीड करने वाले बड़े बड़े नेताओं , संस्थाओं के मुखियाओं और समाज के अग्रणी सभी लोगों के साथ यह समस्या और भी विकराल रूप में है |
                                                    
                                                       उदाहरण के तौर पर पच्चहतर (75) वर्ष का एक जिम्मेदार केन्द्रीय मंत्री अगर आज यह कहता है कि वह जब 10वीं कक्षा में था तो चिमनी की रोशनी में पढ़ा था और स्कूल के लिए 10 किलोमीटर आना-जाना करता था , इसलिए गरीबों के प्रति उसकी संवेदनशीलता पर आज कोई उंगली नहीं उठाई जानी चाहिये , चाहे आज शहर या गाँव में बिजली होने के बावजूद और बिजली का बिल नियमित पटाने के बावजूद , कोई विद्यार्थी चिमनी में भी इसलिए नहीं पढ़ पाए ,क्योंकि , केरोसीन या तो मिलेगा नहीं ,और अगर मिल भी गया तो उसकी कीमत बिजली से कई गुना ज्यादा पड़ती है | जहां तक स्कूल आने-जाने के लिए 10 किलोमीटर आना-जाना करने का सवाल है , वह आज भी लाखों की संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे कर रहे हैं | यहाँ तक कि कालेज की पढ़ाई करने के लिए , क्या गाँव और क्या शहर , दोनों जगह , लड़के और लड़कियां , दोनों , साईकिलों से 20-30 किलोमीटर से अधिक , और ट्रेन या बस से 50-60 किलोमीटर से अधिक की यात्रा करते हैं | वह नेता या जिम्मेदार मंत्री 1950 के भारत और आज के भारत के बीच का अंतर भुलाकर , आपसे केवल इसलिए सहन करने को या ज्यादा स्पष्ट कहें तो उसकी नीतियों की खामियों को नजरअंदाज करने के लिए कह रहा है ,क्योंकि , उसके अनुसार ,  वह स्वयं किसी जमाने में उस परिस्थिति से गुजर चुका है | यहाँ वह 1950 के भारत और 2010 के भारत के बीच के अंतर को भुलाकर शुद्ध रूप से उसी  ईर्ष्या का शिकार हो जाता है कि जब मुझे नहीं मिला तो तुमको आकांक्षा ही नहीं रखनी चाहिये | यह एक प्रकार से अपने कष्टों के लिए , बाद की पीढ़ियों  को कष्ट में रखकर मलाल निकालने की कार्यावाही है |
                                                   
                                                         इसी तरह प्रधानमंत्री जैसे पद पर आसीन व्यक्ति , जब यह कहता है कि देश के प्रति उसकी संवेदनाओं  को इसलिए नहीं झकझोरना चाहिये कि वह ११ या १३ वर्ष की आयु में लाहौर से भारत आया था और उसके नाना ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था ,तो आश्चर्य होता है | यह देशभक्ति की किस तरह की भावना है कि हम हमारे आज को भूलकर  केवल पूर्वजों की दुहाई देकर अपना बचाव करना चाहते हैं | क्या राष्ट्रभक्ति या देशभक्ति किसी पूंजीपति की विरासत के सामान है कि उसे आने वाली कई पीढियां अपने कर्तव्यों का निष्पादन समुचित ढंग से किये बिना खाती रहेंगी |
                                                      
                                                       आज के भारत की विडम्बना यह है कि यह ट्रेंड सर्वोच्च पदों से लेकर छोटे स्तर तक एक समान रूप से मौजूद है  | एक आईएएस या आईपीएस आफिसर इसलिए करोड़ों रुपये की दौलत कमाना चाहता है कि किसी जमाने में इस योग्यता को प्राप्त करने के लिए उसने बहुत मेहनत की है  या उसके माँ बाप ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए लाखों रुपये खर्च किये हैं | राजनीतिज्ञ इसलिए करोड़ों रुपये बनाना चाहतें हैं कि उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए बहुत संघर्ष किया है और वे नहीं चाहते कि उनकी बाद की पीड़ियाँ इस दौर से गुजरें | इसके अतिरिक्त आज राजनीति में और वह भी चुनावी राजनीति में इतना पैसा इन्वाल्व है कि वे आने वाले कई दशकों के लिए दौलत जमा करके रख लेना चाहते हैं | यही स्थिति हम मजदूर संघठनों के अंदर देखते हैं | मजदूर संघठनों के अंदर सामंती और पूंजीवादी प्रवर्तियों के पीछे भी यही कारण रहता है कि मजदूर नेताओं के अंदर यह भावना घर कर जाती है कि शुरुवाती संघर्ष के बाद उन्हें ,यह हक मिल गया है कि वे अब स्वयं ऐश की जिंदगी जियें और साथ ही साथ अपने बच्चों के भविष्य को भी सँवारे | यही कारण है कि लगभग सभी बड़े अखिल भारतीय एवं मंझोले कद के ट्रेड यूनियन नेताओं के बच्चों को आप विदेश में सेटिलड पाओगे या अव्वल दर्जे किसी मल्टीनेशनल में इन्फ्लुएंस के जरिये नौकरी करते पाओगे | चाहे उन स्वायत संस्थाओं को लीजिए जहां चुनाव होता है या उनको लीजिए जहां लोगों को मनोनीत किया जाता है ,आपको परिस्थिति एक सी ही मिलेगी |
                                                   
                                                           आज के भारत में समाज के प्रति मिशन या सेवा भावना रखकर काम करने वाले लोग आपको मिलेंगे ही नहीं | यदि कोई मिल भी गया तो संभालकर ही विश्वास करें , क्योंकि उसके धोखेबाज निकलने की ही संभावनाएं ही अधि़क होंगी | आज परिस्थिति यह है कि समाज के जो अगुआ हैं , उनके हिस्से में देश का जितना भी हिस्सा आ रहा है , वे उसे लूटने में लगे हैं | जिन्हें हम बड़ा समझते हैं , दरअसल , वे उतने ही छोटे होते हैं | इसीलिये मैं कहता हूँ कि बड़े बड़े लोग भी बहुत छोटे होते हैं |
                                                  
                                                           रोज तो नहीं आ पा रहा , उसके लिए माफी | कल , नहीं , फिर मिलेंगे , कब , आधी रात को , जब , चौकीदार सीटी बजाता है |
                                                     
                                                           शुभकामनाएं , शुभरात्री ,
                                                                                                                             
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                              
                                                                                                                                     अरुण .............        
                                                                 

Wednesday, August 4, 2010

अलादीन का चिराग प्रणव दा के पास ही है --

जब कुछ दिन पहले प्रणव दा ने यह कहा कि उनके पास अलादीन का चिराग नहीं है , तो सच पूछिए मैं बहुत परेशान हो गया था | पता नहीं आपको मालूम है कि नहीं , पर मुझे अच्छे से पता है कि अलादीन का चिराग प्रणव दा के पास ही होना चाहिये था | भाई , परिपाटी के अनुसार चिराग वित्तमंत्रियों के पास ही रहता है | तो , जब प्रणव दा ने चिदंबरम साहब से चार्ज लिया होगा तो चिदंबरम जी ने जरुर उस चिराग को प्रणव दा को दिया होगा | उस चिराग को रगड़ रगड़ कर पिछले तीन सालों में आखिर प्रणव दा ने कितने काम किये हैं | उस चिराग के जरिये ही वे विश्वव्यापी मंदी से हमारे देश के धन्नासेठों को बचा पाए हैं | अजी साहब , यह उस चिराग का कमाल ही था कि मंदी के दौरान उन्होंने लाखों करोड़ रुपया जनता की जेब से निकालकर राहत पैकेज के नाम से धन्नासेठों की जेब में पहुंचा दिया और किसी को उफ़ करने का मौक़ा तक नहीं मिला | इतना ही नहीं उस कारनामें की वजह से दुनिया के बड़े बड़े मुल्कों ने उनकी इतनी पीठ थपथपाई , इतनी पीठ थपथपाई कि आगे आने कई दशकों तक भारत में किसी की पीठ में दर्द नहीं होगा | प्रणव दा ने इसकी पूरी गारंटी कर दी है कि भारतवासियों के पेट में भले ही कितना भी दर्द हो जाए , पर , पीठ में दर्द नहीं हो सकता |
हाँ , तो , मैं अलादीन के चिराग के बारे में बता रहा था कि मुझे पूरा पूरा शक था कि यह है प्रणव दा के पास ही , पर , वो झूठ बोल रहें कि उनके पास नहीं है | दरअसल , प्रणव दा बहुत संवेदनशील और ईमानदार राजनीतिज्ञ हैं | उनको लगा होगा कि यदि सबको पता लग गया कि अलादीन का चिराग उनके पास है तो कहीं लोग उनसे महंगाई , आम जनता की तकलीफें जैसी फालतू की समस्याओं को दूर करने के लिए न बोलने लगें | उनके जैसा कुशल और चतुर वित्तमंत्री आखिर अलादीन के चिराग जैसे उपयोगी यंत्र का इस्तेमाल फालतू की समस्याओं को दूर करने के लिए कैसे करने  दे सकता है | तो , उन्होंने झूठ बोल दिया | वैसे , जब मुझे यह पता नहीं था कि वो झूठ बोल रहें हैं , तो , मैं उनसे पूछने वाला था कि कहीं उन्होंने चिराग योजना आयोग के उपाध्यक्ष मंटोक सिंह जी को तो नहीं दे दिया था | क्योंकि , जिन मंटोक सिंह की योजनाओं में से भोपाल गैस पीड़ितों के लिए पिछले छै वर्षों में एक पैसा नहीं निकला था , वो अचानक ७५० करोड़ रुपया देने को तैयार हो गए | वैसे मुझे यह शक भी था कि कहीं टेम्पररी तौर पर प्रणव दा ने चिराग चिदंबरम साहब को ही ना दे दिया हो , क्योंकि वे भी तो बिचारे उस मंत्री समूह के कनवीनर थे , जिसे भोपाल गैस पीड़ितों के लिए राहत सुझानी थी  | वित्तमंत्री रहते हुए जिन्होंनें एक पाई भी नहीं निकाली , उनके ऊपर इतनी कठोर जिम्मेदारी थी | मंटोक सिंह और चिदंबरम दोनों की कृपणता देखते हुए , इतना तो तय हो गया कि प्रणव दा ने चिराग उन्हें दिया जरुर था |
पर , अब यह कनफर्म हो गया है कि प्रणव दा ने अलादीन का चिराग उनसे वापस भी ले लिया था | आखिर एक वित्तमंत्री बिना अलादीन के चिराग के अपना काम चला ही कैसे सकता है ? अभी , तो , प्रणव दा को बहुत से काम करना है | मल्टीब्रांड खदरा में विदेशी निवेश का बिल लाना है , उसे पार्लियामेंट में पास कराना है | जीएसटी कानून बनाकर भारत की अर्थव्यवस्था को दो खरब की बनाना है | पैदा होने पर अस्पताल में सेवाकर देने से लेकर मरने पर श्मशान घाट में सेवाकर देने के बीच के सारे कामों पर सेवाकर लगाई जा सकने वाली सेवाओं का पता लगाना है | याने काम बहुत हैं और बिना अलादीन के चिराग के यह सब कैसे हो सकता है ? पर अब सब कुछ ठीक हो जाएगा क्योंकि अलादीन का चिराग प्रणव दा के पास ही है यह कनफर्म हो गया है | आप पूछेंगे मुझे कैसे मालूम हुआ ? अरे , बहुत सिंपल है यार , जो विपक्ष महंगाई पर मत-विभाजन वाले नियम के तहत ही बहस करने की मांग पर अड़ा हुआ था , जिसने अपनी मांग के समर्थन में चार-चार दिनों तक लोकसभा ठप्प रखी , भारत बंद जैसा बंद किया , वह प्रणव दा के चाय-समौसे की पार्टी से ही कैसे मान गया ? यह अलादीन के चिराग का कमाल है , जो प्रणव दा याने हर वित्तमंत्री के पास रहता है | प्रणव दा ने विपक्ष को अलादीन के चिराग का कमाल दिखाया होगा और विपक्ष एकदम सेट राईट हो गया | आखर अलादीन के चिराग में धन्नासेठों के पास और धन पहुंचाने के उपायों के अलावा और भी बहुत कुछ रहता है , जैसे स्वीस बैंकों के खातों के रिकार्ड , सीबीआई की फाईलें , अब इनका हवाला देकर क्या कुछ सेट-राईट नहीं हो सकता | सो सब सेट-राईट हो गया | याने अलादीन का चिराग है बड़े काम की चीज | पर , उसका उपयोग हमारे-आपके लिए नहीं हो सकता | वह केवल सम्पन्नों के पक्ष में ही उपयोग में लाया जा सकता है | इसीलिये प्रणव दा ने  झूठ बोला कि उनके पास अलादीन का चिराग नहीं है कि वे महंगाई दूर कर दें , क्योंकि महंगाई से सम्पन्नों को नहीं गरीबों को तकलीफ होती है | देखना , जब फिर कभी सम्पन्नों को फायदा पहुंचाने की बात आयेगी तो अलादीन का चिराग निकल आयेगा |  तब हमारे सांसद भी शोर नहीं मचाएंगे |
 देखिये आज फिर रात , sorry.., आज तो सुबह हो गयी | आज कल फिर मिलेंगे नहीं कह रहा हूँ | फिर मिलेंगे , कब , आधी रात को , जब चौकीदार सीटी बजाता है ; 
                                                                                                                                 


                                                                                                                                   अरुण........
                                                                                                                                                                                                                                                                                                

Sunday, August 1, 2010

आस्तीन में सांप पाले हैं -

        हो सकता है , कुछ लोगों को फ्रेंडशिप डे पर यह बात अजीबोगरीब लगे | पर , मेरी सलाह हमेशा यही रहेगी कि जब भी दोस्त बनाओ , बहुत सोच समझकर बनाओ | यदि आप खुद अपनी जिंदगी पर नजर दौड़ाओगे तो पाओगे बचपन से लेकर अभी तक जितना नुकसान आपने दोस्ती के खातिर उठाया है , उतना नुकसान किसी और संपर्क से नहीं. उठाया होगा | बचपन में माँ -बाप बच्चों के दोस्तों को बच्चों से पहले पहचान जाते है , इसीलिये वे अपने बच्चों के दोस्तों पर और खुद अपने बच्चों पर अंकुश लगाया करते हैं | यह सिलसिला आज तक चला आ रहा है | कथा कहानियों और फिल्मों को छोड़ दें तो पहले बचपन ,फिर स्कूल , कालेज और उसके बाद व्यवसाय में दोस्त बनते हैं | बचपन और स्कूल के दोस्त अकसर बिछुडने के बाद मुश्किल से मिलते हैं | यदि मिले भी तो खुशी कितनी भी दिखाएँ लेकिन  A Friend in need ,A Friend indeed नहीं हो पाते हैं | कालेज के दोस्तों के साथ भी कमोबेश यही बात लागू होती है | एक ही पेशे में होने से जों मित्रता कायम होती है , उसमें अवश्य कुछ ठहराव होता है , पर इसी मुकाम पर मित्रता में धोके भी बहुत होते हैं | क्योंकि तब आपकी मित्रता परिपक्व लोगों से होती है , जिनके अपने स्वार्थ होते हैं , लक्ष्य होते हैं और उन लक्ष्यों की प्राप्ती के लिए कुटिल चालें होती हैं , जिनके सामने मित्रता कहीं नहीं टिकती |दोस्त बनाने से पहले दुष्यंत का यह मशहूर शेर हमेशा याद रखो ;
                   जब भी किसी आदमी को देखो बार बार देखना
                   एक आदमी के अंदर छिपे रहते हैं कई कई आदमी
और , यदि , आपका मित्र राजनीति में है तो समझ लीजिए वह आपका मित्र नहीं है | मित्र के नाम पर ढोंगी है | आप उसके लिए एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं जिसका इस्तेमाल करने के बाद वह  इस्तेमाल करने वाले के लिए तुच्छ हो जाती है | मैंने बत्तीस साल पहले यह गलती की थी , काशीनाथ के साथ मित्रता करके | दूसरी गलती यह है कि में उस मित्रता को  आज तक निभाता रहा , इस सचाई को जानने के बाद भी कि वो मेरा इस्तेमाल घोड़ी की तरह कर रहा है , जिस पर चडकर वह तो बुलंदियों को छूना चाहता है , पर बुलंदी पर पहुँचने के बाद घोड़ी को लात मारकर गिराना भी नहीं भूलता | सही मित्र की एक ही पहचान होती है ,वह आपकी बुराई बकौल शायर कुछ इस तरह करता है ;
                            मुझसे कहिये खताएं मेरी
                            गैर से मत गिला कीजिये |
 आप कह सकते हैं , सबके अपने-अपने अनुभव होते हैं | पर , जब विपरीत अनुभव ज्यादा हों तो संभलकर चलने में ही समझदारी है | इस फ्रेंडशिप डे पर तो में इतना ही कहूँगा ;
                            आस्तीनों में सांप पाले हैं
                            मेरे अंदाज कुछ निराले हैं |
वैसे दोस्त कितना भी दुश्मन क्यूँ न बन जाए , मेरा तो उसके लिए हमेशा यही सन्देश रहेगा ;
                            तुम्हारी - मेरी ये दुश्मनी भी है
                            एक मुअम्मा 
                            खुद अपने घर को न आग जब तक
                            लगाओगे तुम
                            मुझे नहीं मार पाओगे तुम |
हेप्पी फ्रेंडशिप डे ?
कल उपस्थित नहीं हो पाया , उसके लिए माफी | दरअसल , शनिवार को मेरा नाती आ जाता है | वह काम नहीं करने देता | आने वाले समय में इसका कुछ उपाय निकालूँगा |
कल फिर मुलाक़ात होगी ,कब , आधी रात को , जब चौकीदार सीटी बजाता है |
                             शुभ रात्री , शुभ कामनाएं |
                                                                                                       अरुण .....             

Friday, July 30, 2010

शुभ रात्री

इस समय रात के सवा बजे हैं और मैनें सीधी सीधी बातें करने के लिए यह ब्लॉग शुरू किया है | ब्लॉग जगत के धाकड़ और धाँसू पाठकों के लिए तो यह शाम की शुरुवात होनी चाहिये | यही सोचकर पहली पोस्ट का पहला नमस्कार आप लोगों की तरफ फेंक रहा हूँ , कृपया झेल लीजिए | जिस तरह बगीचे में सुबह सबेरे कुछ लोग गंभीरता पूर्वक ब्रिस्क वाकिंग और योगा करने के लिए जाते हैं और कुछ लोग ठहाके लगाकर हेल्थ बनाने , उसी तरह गंभीरतापूर्वक ब्रिस्क वाकिंग और योगा के लिए मेरा दूसरा ब्लॉग aksaditya.blogspot.com देखें और ठहाके लगाकर हेल्थ बनाने के लिए सीधी बात हाजिर है | मुझे पूरा विश्वास है आप लोग सीधी बात का स्वागत करेंगे | यदि नहीं भी करेंगे , तो भी कोई फर्क नहीं पडता , मुझे तो जो करना है ,वह मैं करता ही जाऊंगा | बहरहाल , मेरी तो यही कोशिश होगी कि रोज रात को करीब करीब इसी समय आपसे बात की जाए , चाहे आपको पसंद आये या नहीं आये | वैसे डरने डराने की बात नहीं है | आधी रात के बाद , सुबह के ठीक कुछ पहले जैसा मैं प्रतीत हो रहा हूँ , एकदम वैसा ही नहीं हूँ , उससे काफी कुछ ठीक हूँ | मेरे साथ ऐसा ही होता है | पहले कुछ समय लोग मुझसे दूर भागने की कोशिश करते हैं , पर , एक बार जब पास पास और किसमी गुटखे के समान मेरे मुहँ से लग जाते हैं तो फिर बाहर निकलने की कोशिश भी करना भूल जाते हैं | आप फिकिर नाट सी एम  रहिये , आपके साथ भी यही होने वाला है | बहरहाल आज के लिए इतना काफी है , फिर कल मिलेंगे , कब , आधी रात को , जब चौकीदार सीटी बजाता है |
                                                                                                शुभ रात्री ,शुभकामनाएं ,
                                                                                                               अरुण ...