वो ज़माना और था ,
जब बह जाती थी गन्दगी बरसात के साथ ,
अब बरसात दबी गन्दगी को बिखेर देती है ,
हमारे आपके सामने आसपास ,
गन्दगी तुम में और मुझमें हो न हो ,
हम बैठे जरुर हैं गन्दगी के ठीक बीचों बीच ,
ये वो गन्दगी है ,
जो न मेरी है न तुम्हारी है ,
ये कोई और है जिसने ,
बिखेर दी है अपनी गन्दगी ,
मेरे और तुम्हारे आसपास ,
ये कोई और कौन है ,
इसे तुम भी जानते हो ,
मैं भी जानता हूँ ,
वो कोई और ही तुम है ,
और वो कोई और ही मैं है ,
उसकी पूरी चौपड़ में ,
मैं भी एक सिक्का हूँ ,
तुम भी एक सिक्का हो ,
भ्रम मत पालो कि तुम्हारी हैसियत ,
किसी जिम्मेदार के जैसी है ,
या मैं हूँ कोई जिम्मेदार ,
जब तुम्हारी जिंदगी का ,
और मेरी जिंदगी का भी ,
जो कुछ है ,
उसी का है ,
यहाँ तक कि फैसले हमारे ,
लेता वह है तो ,
वह ही है जिम्मेदार ,
फिर बची क्या ,
सारी गन्दगी का ,
जिम्मेदार वही है ,
जो इस व्यवस्था में बैठा है ,
सबसे ऊपर ,
चोरों का सरदार |